iPhone की EMI में डूबा मिडिल क्लास: घर नहीं, लेकिन दिखावे की जिंदगी में लाखों का कर्ज!

महंगे मोबाइल, बाइक और कार खरीदने की होड़ में भारत का मिडिल क्लास बुरी तरह कर्ज में डूब रहा है
iPhone खरीदना हो या नई बाइक, EMI पर सब मिल रहा है — चाहे जेब में एक रुपया न हो।
ज़ीरो डाउन पेमेंट स्कीम्स ने कर्ज लेना इतना आसान बना दिया है कि लोग खुद फंसे जा रहे हैं।
क्रेडिट कार्ड अब शौक पूरे करने का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है।
लोग EMI नहीं बनवाते, लेकिन कार्ड से पेमेंट कर देते हैं और बकाया बाद में चुकाते हैं।
बीते 13 सालों में भारत में क्रेडिट कार्ड खर्च 13 गुना बढ़ चुका है।
2010 में जहाँ ये ₹1.2 लाख करोड़ था, अब ₹15.6 लाख करोड़ हो गया है।
पर्सनल लोन अब घर खरीदने के लिए नहीं, बल्कि फालतू खर्चों के लिए लिया जा रहा है।
55% लोन अब नॉन-हाउसिंग खर्चों पर लग रहे हैं — जैसे मोबाइल, फर्नीचर, ट्रैवल वगैरह।
फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स भी चेतावनी दे रहे हैं: ये ट्रेंड बहुत खतरनाक है।
लोन तो तुरंत मिल जाता है, लेकिन उसे चुकाने की रफ्तार धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
प्रांजल कामरा के मुताबिक, एक भारतीय का औसत कर्ज ₹3.9 लाख से बढ़कर ₹4.8 लाख हो चुका है।
और ये आंकड़ा हर महीने तेज़ी से ऊपर जा रहा है।
अब होम लोन का हिस्सा कुल लोन में सिर्फ 29% रह गया है।
बाकी सारे लोन सिर्फ उपभोग यानी खर्चों के लिए लिए जा रहे हैं।
क्रेडिट कार्ड की संख्या 2 करोड़ से बढ़कर अब 10.8 करोड़ हो चुकी है।
हर दूसरा शख्स अब कार्ड से "बाद में चुकाने" की आदत का शिकार बन रहा है।
RBI भी इस लोन कल्चर से चिंतित है और बार-बार चेतावनी दे चुका है।
बिना गारंटी वाले लोन का दायरा बहुत बढ़ चुका है, जिससे डिफॉल्ट का खतरा मंडरा रहा है।
लोग अब तात्कालिक खुशी के लिए उधार ले रहे हैं, ना कि भविष्य बनाने के लिए।
आज की संतुष्टि कल के आर्थिक बर्बादी की नींव बन रही है।
एक वक्त था जब लोन संपत्ति बनाने के लिए लिया जाता था।
अब लोन सिर्फ इंस्टेंट लाइफस्टाइल के लिए लिया जाता है — चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो।
क्या ये आर्थिक ग्रोथ है या आने वाला फाइनेंशियल डिजास्टर?
ये सवाल अब सिर्फ एक्सपर्ट्स के लिए नहीं, हम सबके लिए ज़रूरी है।
अगर ये ट्रेंड जारी रहा, तो जल्द ही मिडिल क्लास सिर्फ EMI भरने वाली जनसंख्या बन जाएगी।
"EMI का भारत" — यही हमारी आने वाली हकीकत हो सकती है।
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