दिल्ली में किसानों का आक्रोश फूटा, सरकार से सीधी टक्कर!
आंसू गैस के बीच किसानों का दिल्ली मार्च जारी, सरकार के खिलाफ तनाव चरम पर
दिल्ली की सीमा पर किसानों और सरकार के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। सरकार की सख्त चेतावनियों के बाद भी किसानों ने अपना दिल्ली मार्च फिर से शुरू करने के लिए कमर कस ली है। विवादित कृषि सुधारों को लेकर महीनों से चले आ रहे गतिरोध के बाद किसानों में सरकार के खिलाफ भारी रोष दिख रहा है।
सुबह होते ही किसानों और भारी सुरक्षा बलों के बीच तीखी झड़प हुई। दूर-दराज से आए किसान अपनी आजीविका को खतरे में डालने वाली नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अड़े हैं। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया, जो सरकार के कड़े रुख को दर्शाता है।
दिल्ली मार्च कोई नई घटना नहीं है। यह उस आंदोलन की फिर से वापसी है जिसने किसानों को महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले रखा है। ये विरोध प्रदर्शन भारत में पारंपरिक कृषि ढांचे को खत्म करने के प्रयास के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गए हैं। सरकार अपने कदमों पर अडिग है और किसान भी, जिससे गतिरोध लंबा खिंच सकता है।
इस विवाद के केंद्र में 2020 में पारित किए गए तीन कृषि कानून हैं। सरकार का दावा है कि ये कानून कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाएंगे और उत्पादकता बढ़ाएंगे। हालांकि, किसानों को डर है कि ये कानून मूल्य गारंटी छीन लेंगे और उन्हें बड़े निगमों के रहम पर छोड़ देंगे। सरकार लगातार समझाने की कोशिश कर रही है, लेकिन दोनों पक्षों के बीच विश्वास का अंतर बढ़ता ही जा रहा है।
यह तनाव केवल नीतिगत विवाद नहीं रहा, बल्कि भारत में कृषि के भविष्य के बारे में एक राष्ट्रीय संवाद शुरू हो गया है। इसने अंतरराष्ट्रीय हस्तियों और संगठनों का ध्यान आकर्षित किया है जो एक शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान कर रहे हैं। जैसे ही किसान अपना मार्च फिर से शुरू करने की तैयारी करते हैं, दुनिया भर से नजरें उन पर टिकी हैं।
आने वाले दिन किसानों और सरकार दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। किसानों के मार्च जारी रखने और सरकार द्वारा सख्त कदम उठाने से ऐसा लगता है कि समाधान का रास्ता चुनौतियों से भरा है। लेकिन, यह गतिरोध भारत के लिए निर्णायक क्षण है, जहाँ लंबे समय से चली आ रही शिकायतों को दूर करने और एक स्थायी और समावेशी कृषि नीति की ओर काम करने का अवसर है।
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